सिंधु जल समझौता (Indus Waters Treaty) क्या है?
यह 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ एक जल-बंटवारा समझौता है, जिस पर विश्व बैंक की मध्यस्थता में हस्ताक्षर किए गए थे। इसके तहत सिंधु नदी प्रणाली (Indus River System) के 6 नदियों के पानी का वितरण तय किया गया:
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पाकिस्तान को: सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियाँ) का 80% पानी।
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भारत को: रावी, ब्यास और सतलज (पूर्वी नदियाँ) का 20% पानी।
विभाजन (Partition) के बाद क्यों जरूरी हुआ यह समझौता?
1947 के बंटवारे के बाद सिंधु नदी प्रणाली दोनों देशों में बंट गई, लेकिन पाकिस्तान को डर था कि भारत पानी रोक देगा (क्योंकि नदियों का उद्गम भारत में है)। इसलिए, 9 साल की बातचीत के बाद 1960 में यह समझौता हुआ।
समझौते की मुख्य शर्तें:
✔ भारत पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) पर बड़े बांध नहीं बना सकता, लेकिन सीमित सिंचाई और हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स ले सकता है।
✔ पाकिस्तान को पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलज) पर कोई अधिकार नहीं।
✔ विवादों का निपटारा न्यूट्रल एक्सपर्ट या अंतरराष्ट्रीय कोर्ट से होगा।
पाकिस्तान को क्यों है शिकायत?
पाकिस्तान का दावा है कि भारत ने समझौते का उल्लंघन करते हुए कई हाइड्रो प्रोजेक्ट्स (जैसे किशनगंगा, रातले बांध) बना लिए, जिससे उसके हिस्से का पानी कम हो रहा है। भारत का कहना है कि ये प्रोजेक्ट समझौते के दायरे में हैं।
क्या भारत समझौता तोड़ सकता है?
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2019 में पुलवामा हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौता रिव्यू करने की बात कही थी।
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2025 में, पाकिस्तान की ओर से लगातार आतंकी घटनाओं के बाद, भारत ने फिर से इस समझौते पर सवाल उठाए हैं।
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हालांकि, विशेषज्ञ मानते हैं कि समझौता तोड़ना भारत के लिए फायदेमंद नहीं, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय छवि खराब होगी और पड़ोसी देशों (चीन, नेपाल) के साथ जल विवाद बढ़ सकते हैं।
पाकिस्तान पर प्रभाव (Pak Impact):
अगर भारत पानी का बहाव कम कर दे, तो:
⚠ पाकिस्तान की कृषि (खासकर पंजाब और सिंध प्रांत) को भारी नुकसान होगा।
⚠ पीने के पानी की किल्लत हो सकती है।
⚠ अर्थव्यवस्था और राजनीतिक स्थिरता पर संकट आ सकता है।
क्या है भविष्य का रास्ता?
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भारत समझौते को पूरी तरह नहीं तोड़ेगा, लेकिन पाकिस्तान को दबाव में रखने के लिए इसका सीमित उप
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योग कर सकता है।
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नए हाइड्रो प्रोजेक्ट्स बनाकर भारत अपने हिस्से का पानी बेहतर तरीके से इस्तेमाल कर सकता है।
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अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता अभी भी विवादों का मुख्य रास्ता है।
NDTV के 24 अप्रैल 2025 के विशेष लेख “NDTV Explains: Story Of Indus Waters Treaty, Partition, Planning, Pak Impact” में सिंधु जल संधि की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, विभाजन के बाद की जल विवाद की स्थिति, और हालिया घटनाओं के प्रभाव पर विस्तार से चर्चा की गई है।
🏞️ सिंधु जल संधि: ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद, सिंधु नदी प्रणाली के जल संसाधनों को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद उत्पन्न हुआ। इस विवाद को सुलझाने के लिए 13 वर्षों की बातचीत के बाद, 19 सितंबर 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान ने विश्व बैंक की मध्यस्थता में सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर किए।www.ndtv.com
📜 संधि के प्रमुख प्रावधान
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पूर्वी नदियाँ (सतलुज, ब्यास, रावी): इन नदियों का जल उपयोग भारत को सौंपा गया।
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पश्चिमी नदियाँ (सिंधु, झेलम, चिनाब): इनका जल पाकिस्तान को प्रदान किया गया, हालांकि भारत को सीमित उपयोग की अनुमति दी गई।
यह संधि तीन युद्धों (1965, 1971, 1999) के बावजूद प्रभावी रही।www.ndtv.com
🛑 हालिया घटनाक्रम: संधि का निलंबन
23 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले, जिसमें 26 पर्यटकों की मृत्यु हुई, के प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को औपचारिक रूप से सूचित किया कि यह निर्णय तत्काल प्रभाव से लागू होगा, जब तक कि पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन समाप्त नहीं करता।
🇵🇰 पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने भारत के इस कदम को “युद्ध की कार्यवाही” करार देते हुए व्यापार, द्विपक्षीय समझौतों (जैसे शिमला समझौता) और हवाई क्षेत्र के उपयोग को निलंबित करने की घोषणा की।
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