सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक निर्णय में स्पष्ट किया है कि राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास ‘पूर्ण वीटो’ या ‘पॉकेट वीटो’ का अधिकार नहीं है। इस फैसले में कहा गया है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते और उन्हें निर्धारित समयसीमा के भीतर निर्णय लेना अनिवार्य है।sanmarg.in+2Hindustan Hindi News+2Live Law Hindi+2
🏛️ सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: प्रमुख बिंदु
-
‘पूर्ण वीटो’ की अवधारणा असंवैधानिक: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान राज्यपाल या राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर अनिश्चितकाल तक निर्णय न लेने का अधिकार नहीं देता। ऐसा करना संविधान की भावना के विपरीत है।
-
निर्धारित समयसीमा:
-
यदि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना विधेयक पर सहमति नहीं देते, तो उन्हें तीन महीने के भीतर विधेयक को विधानसभा को लौटाना होगा।Hindustan Hindi News
-
विधानसभा द्वारा पुनः पारित किए गए विधेयकों पर राज्यपाल को एक महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।Hindustan Hindi News
-
यदि राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजते हैं, तो यह प्रक्रिया अधिकतम तीन महीने में पूरी होनी चाहिए।Live Law Hindi+2sanmarg.in+2Hindustan Hindi News+2
-
-
तमिलनाडु का मामला: तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध और त्रुटिपूर्ण माना। न्यायालय ने कहा कि विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजने से पहले राज्यपाल को सद्भावनापूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिए था।Hindustan Hindi News+3Live Law Hindi+3sanmarg.in+3
-
लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान: न्यायालय ने कहा कि राज्यपालों को लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और जनता के जनादेश का सम्मान करना चाहिए।Hindustan Hindi News
यह निर्णय भारत के संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।Hindustan Hindi News
अधिक जानकारी के लिए आप निम्नलिखित स्रोतों को देख सकते हैं:
-
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति के पास ‘पूर्ण वीटो’ अधिकार नहीं, 3 महीने में बिल पर फैसला अनिवार्य
Supreme Court’s Landmark Ruling: President Does Not Have Absolute Veto Power, Must Decide on Bills Within 3 Months
⚖️ महत्वपूर्ण अपडेट: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति के पास किसी बिल को अनिश्चित काल तक रोकने (पूर्ण वीटो) का अधिकार नहीं है। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति को किसी भी बिल पर 3 महीने के भीतर फैसला लेना होगा, चाहे वह मंजूरी दें, अस्वीकार करें या संसद को पुनर्विचार के लिए वापस भेजें।
-
क्या है पूरा मामला? (What is the Case About?)
- कई राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा पारित कानूनी बिल लंबे समय से राष्ट्रपति के पास लंबित थे।
- कुछ मामलों में राष्ट्रपति की स्वीकृति के बिना बिल वर्षों तक अटके रहे, जिससे कानूनी प्रक्रिया प्रभावित हुई।
- इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 111 की व्याख्या करते हुए यह फैसला सुनाया।
-
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों के संबंध में बड़ा फैसला सुनाया है. शीर्ष अदालत ने इस संबंध में राष्ट्रपति को फैसला लेने के लिए तीन महीने की समय सीमा तय कर दी है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अवधि से अधिक देरी होने पर उचित कारण बताए जाने चाहिए और संबंधित राज्य को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति को तीन महीने की अवधि तय कर दी. यह फैसला तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि से जुड़े एक मामले के संबंध में आया. अदालत ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि की इस कार्रवाई को अवैध और गलत घोषित किया.
राज्यपाल आर एन रवि द्वारा 10 विधेयकों को नवंबर 2023 में राष्ट्रपति के विचार के लिए भेजा गया जबकि राज्य विधानसभा उन पर पहले ही पुनर्विचार कर चुकी थी. न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने कहा कि राज्यपाल के पास किसी विधेयक पर ‘पूर्ण वीटो’ का प्रयोग करने का अधिकार नहीं है, ‘हमें कोई कारण नहीं दिखता कि यही मानक अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति पर भी लागू क्यों नहीं होगा.’
पीठ ने अपने 415 पन्नों के फैसले में कहा, ‘राष्ट्रपति इस डिफॉल्ट नियम का अपवाद नहीं है जो हमारे पूरे संविधान में व्याप्त है. ऐसी बेलगाम शक्तियां इन संवैधानिक पदों में से किसी में भी नहीं रह सकतीं.’
पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि बिना किसी औचित्य या आवश्यकता के अनुच्छेद 201 के तहत संदर्भ पर निर्णय लेने में राष्ट्रपति की ओर से की गई देरी, इस बुनियादी संवैधानिक सिद्धांत के विरुद्ध होगी कि शक्ति का प्रयोग मनमाना और स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए.
न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा, ‘निष्क्रियता के परिणाम गंभीर प्रकृति के हैं और संविधान के संघीय ढांचे के लिए हानिकारक हैं. इसलिए अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति की ओर से अनावश्यक देरी की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.’
पीठ ने कहा, ‘हालांकि हम इस तथ्य से परिचित हैं कि अनुच्छेद 201 के तहत अपनी शक्तियों का निर्वहन करते हुए राष्ट्रपति से विधेयक पर ‘विचार’ करने की अपेक्षा की जाती है. इस तरह के ‘विचार’ को सख्त समय सीमा में बांधना कठिन हो सकता है, फिर भी यह राष्ट्रपति की ओर से निष्क्रियता को उचित ठहराने का आधार नहीं हो सकता है.’
पीठ ने कहा कि तीन महीने के भीतर निर्णय महत्वपूर्ण है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के निर्णय के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस अवधि से अधिक देरी होने पर उचित कारण दर्ज किए जाने चाहिए. संबंधित राज्य को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए. पीठ ने कहा कि यह स्पष्ट किया जाना चाहिए कि अदालतें ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने में असमर्थ नहीं होंगी. जहां संवैधानिक प्राधिकरण द्वारा उचित समय के बिना कार्य नहीं किया जा रहा हो.
सुप्रीम कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ (Key Observations by Supreme Court)
✔ “राष्ट्रपति का वीटो सीमित है” – वे बिल को अस्वीकार या लौटा सकते हैं, लेकिन अनिश्चित काल तक रोक नहीं सकते।
✔ “3 महीने की समयसीमा जरूरी” – राष्ट्रपति को 90 दिनों के भीतर बिल पर फैसला देना होगा।
✔ “संसदीय लोकतंत्र का सम्मान” – अदालत ने कहा कि लंबे समय तक बिल रोकना लोकतांत्रिक प्रक्रिया के खिलाफ है।
राष्ट्रपति की बिल पर क्या भूमिका होती है? (President’s Role in Law-Making Process)
- मंजूरी (Assent): बिल कानून बन जाता है।
- पुनर्विचार के लिए लौटाना (Return for Reconsideration): संसद फिर से विचार कर सकती है।
- वीटो (Withhold Assent): दुर्लभ मामलों में राष्ट्रपति बिल को रोक सकते हैं, लेकिन अब अनिश्चित समय तक नहीं।
फैसले का क्या प्रभाव होगा? (Impact of the Judgment)
✅ लंबित बिलों को जल्द निपटाना होगा – केंद्र और राज्य सरकारों के 100+ बिल अटके हुए हैं।
✅ राज्यपालों पर भी लागू होगा? – SC ने पहले ही कहा था कि राज्यपाल भी बिलों को अनावश्यक रूप से नहीं रोक सकते।
✅ संसदीय प्रक्रिया तेज होगी – अब कानून बनने में देरी नहीं होगी।
क्या अब तक कौन-से बिल अटके हुए हैं?
- केरल का लोकसभा सदस्यों की संख्या बढ़ाने वाला बिल (कई सालों से लंबित)।
- पंजाब का स्थानीय निकाय संशोधन बिल।
- तमिलनाडु का NEET छूट संबंधी बिल।
📢 यह फैसला भारतीय लोकतंत्र को मजबूत करता है!
,